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अदरक की खेती के लिए जलवायु, मृदा, उर्वरक, लागत और आय की जानकारी

अदरक की खेती के लिए जलवायु, मृदा, उर्वरक, लागत और आय की जानकारी

भारत में ऐसा कोई रसोई घर नहीं जहां आपको साग पात्र में अदरक की मौजूदगी ना मिले। क्योंकि अदरक का इस्तेमाल खाना बनाने के लिए भी किया जाता है। 

साथ ही, अदरक एक विशेष महत्वपूर्ण औषधीय फसल है, जो सेहत के लिए अत्यंत फायदेमंद मानी जाती है। अदरक में कैल्शियम, मैंगनीज, फॉस्फोरस, जिंक और विटामिन सी सहित बहुत सारे औषधीय गुण विघमान होते हैं। 

अदरक का इस्तेमाल औषोधिक दवाई के तोर पर भी किया जाता है। बाजार में अदरक से निर्मित सोंठ की कीमत इससे अधिक होती है। 

भारतीय बाजार में वर्षभर अदरक की मांग बनी रहती है, जिससे किसान इसकी खेती से अच्छा-खासा मुनाफा अर्जित कर सकते हैं। 

अदरक की खेती के लिए उपयुक्त मृदा एवं जलवायु

अदरक की खेती के लिए बलुई दोमट मृदा को सर्वोत्तम माना जाता है। इस मिट्टी में इसकी फसल का शानदार विकास होता है। साथ ही, किसानों को अधिक उपज भी प्राप्त होती है। 

अदरक की खेती के लिए मृदा का pH स्तर 6.0 से 7.5 के मध्य उपयुक्त माना जाता है। अदरक के पौधों के लिए 25 से 35 सेल्सियस का तापमान सबसे अच्छा माना जाता है। 

इसके पौधों को अच्छी-खासी नमी और सही सिंचाई की आवश्यकता होती है। अदरक को बोने का कार्य मार्च-अप्रैल में किया जाता है और इसका उत्पादन अक्टूबर-नवंबर के दौरान होता है, जब इसके पौधे पूर्णतय विकसित हो जाते हैं।

अदरक की खेती में गोबर की खाद का प्रयोग  

अदरक के खेत से शानदार उत्पादन अर्जित करने के लिए कृषकों को इसके खेत में गोबर खाद का प्रयोग करना चाहिए। इसके खेत में कृषकों को सड़े गोबर की खाद, नीम की खली और वर्मी कम्पोस्ट को डाल कर अच्छे से खेत की मृदा में मिला देना चाहिए। 

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इसके पश्चात मिट्टी को एकसार कर देना चाहिए। अब किसानों को इसे छोटी-छोटी क्यारियों में विभाजित कर लेना है और खेतों में प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 2 से 3 क्विंटल बीजदर से बुवाई करनी है। दक्षिण भारत में अदरक की बुवाई मार्च-अप्रैल के माह में की जाती है और इसके बाद एक सिंचाई की जाती है। 

अदरक की खेती से किसान लाखों कमा सकते हैं 

अदरक के बीज की बुवाई के 8 से 9 महीने के पश्चात इसकी फसल पूर्णतय पककर तैयार हो जाती है। अदरक की फसल जब सही ढ़ंग से पककर तैयार हो जाती है, तब इसके पौधों का विकास होना बाधित हो जाता है 

और इसकी फसलें पीली पड़कर सूखने लग जाती हैं। किसान अदरक की खेती करके प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 150 से 200 क्विंटल तक का उत्पादन हांसिल कर सकते हैं।

 बाजारों में इसका एक किलोग्राम बीज लगभग 40 रुपये या इससे ज्यादा रहता है। किसान इसकी खेती कर सुगमता से 3.5 से 4 लाख तक की आमदनी कर सकते हैं। 

जानें किस वजह से धनिया के भाव में हुई 36 रुपए की बढ़ोत्तरी, फिलहाल क्या हैं मंडी भाव

जानें किस वजह से धनिया के भाव में हुई 36 रुपए की बढ़ोत्तरी, फिलहाल क्या हैं मंडी भाव

जानकारों ने बताया है, कि फिलहाल बाजार में मजबूती के रुख और उत्पादक क्षेत्रों से सीमित आपूर्ति की वजह से विशेष रूप से धनिया वायदा भावों में वृद्धि हुई है । वर्तमान बाजार में मजबूती के रुख के चलते हुए सटोरियों ने अपने सौदों का आकार बढ़ाने से वायदा कारोबार में सोमवार को धनिया की कीमत 36 रुपये की वृद्धि के साथ 6,942 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंचा दिया है । एनसीडीईएक्स में धनिया के अप्रैल माह में आपूर्ति वाले अनुबंध का मूल्य 36 रुपये या 0.52 फीसद की वृद्धि के साथ 6,942 रुपये प्रति क्विंटल पहुंच गया है । इसमें 11,095 लॉट के लिए कारोबार हुआ है । बाजार जानकारों ने बताया है, कि हाजिर बाजार में मजबूती के रुख तथा उत्पादक क्षेत्रों से सीमित आपूर्ति की वजह मुख्यत: धनिया वायदा कीमतों में वृद्धि हुई है । साथ ही, इंदौर में मौजूद स्थानीय खाद्य तेल बाजार में सोमवार को पाम तेल की कीमत में पांच रुपये प्रति 10 किलोग्राम की गिरावट शनिवार की तुलना में हुई है। आज सरसों 100 रुपये प्रति क्विंटल सस्ती बेची गई है ।

तिलहन की मंडी में कितनी कीमत है

  • सरसों (निमाड़ी) 5800 से 5900 रुपये प्रति क्विंटल ।
  • सोयाबीन 4800 से 5400 रुपये प्रति क्विंटल ।

तेल

  • मूंगफली तेल 1690 से 1700 रुपये प्रति 10 किलोग्राम ।
  • सोयाबीन रिफाइंड तेल 1105 से 1110 रुपये प्रति 10 किलोग्राम ।
  • सोयाबीन साल्वेंट 1075 से 1080 रुपये प्रति 10 किलोग्राम ।
  • पाम तेल 1025 से 1030 रुपये प्रति 10 किलोग्राम ।


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कपास्या खली

  • कपास्या खली इंदौर 1800 60 किलोग्राम बोरी ।
  • कपास्या खली देवास 1800 60 किलोग्राम बोरी ।
  • कपास्या खली खंडवा 1775 60 किलोग्राम बोरी ।
  • कपास्या खली बुरहानपुर 1775 रुपये प्रति 60 किलोग्राम बोरी ।
  • कपास्या खली अकोला 2700 रुपये प्रति क्विंटल ।
गर्मियों के दिनों में गाय, भैंस के घटते दुग्ध उत्पादन को बढ़ाने के अचूक उपाय

गर्मियों के दिनों में गाय, भैंस के घटते दुग्ध उत्पादन को बढ़ाने के अचूक उपाय

आने वाले दिनों में भीषण गर्मी का प्रकोप देखने को मिलेगा। भीषण गर्मी के चलते मनुष्य ही नहीं जानवर भी काफी प्रभावित होंगे। दरअसल, गर्मियों के दिनों सामान्य तौर पर खाने में अरूचि पैदा हो जाती है। ऐसा मानव और जानवर दोनों में होता है। 

पशु गर्मियों में कम चारा खाना शुरू कर देते हैं, जिसका दूध की मात्रा पर सीधा असर पड़ता है। गाय हो अथवा भैंस गर्मियों में सर्दियों के मुकाबले कम दूध देना शुरू कर देती है। इस वजह से पशुपालकों का लाभ कम होने लगता है। दुधारू मवेशियों द्वारा कम दूध देने की शिकायत को लेकर पशुपालक काफी चिंतित रहते हैं। 

अधिकांश पशुपालक अधिक मुनाफा कमाने के चक्कर में पशुओं को इंजेक्शन देना चालू कर देते हैं, जिससे पशुओं की सेहत पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। साथ ही, दूध की क्वालिटी में भी गिरावट आ जाती है। 

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ऐसे में पशुपालकों को गाय का दूध बढ़ाने के प्राकृतिक उपाय जिसमें घरेलू चीजों के उपयोग से तैयार की गई दवाई का इस्तेमाल करना चाहिए। इससे दुग्ध उत्पादन बढ़ने के साथ-साथ पशु के स्वास्थ्य पर भी नकारात्मक या प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा। मुख्य बात यह है, कि यह सब चीजें आपको बड़ी सुगमता से बाजार में प्राप्त हो जाएंगी।

पशुओं को चारे में मिलाकर लहसुन खिलाएं

अगर गाय-भैंस के चारे में लहसुन का मिश्रण कर दिया जाए तो पशुओं का दूध काफी बढ़ जाता है। वैज्ञानिक प्रमाण के आधार पर ऐसा बताया जाता है, कि अगर मवेशियों को चारे में लहसुन को मिलाकर खाने के लिए दिया जाए तो वह जुगाली करते समय जो मुंह से मीथेन गैस छोड़ती हैं, वे कम छोड़ेंगी। इससे ग्लोबल वार्मिंग को कम करने में काफी मदद मिलेगी। ऐसा वैज्ञानिकों का मानना है। 

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वैज्ञानिकों के मुताबिक ग्लोबल वार्मिंग को प्रभावित करने वाली मीथेन गैस का 4 प्रतिशत हिस्सा पशुओं की जुगाली के दौरान मुंह से निकलने वाली गैसों का है। अगर पशुओं को उनके चारे में लहसुन मिलाकर खाने को दें तो वे कम मात्रा में मीथेन गैस का उत्सर्जन करेगी, जिससे ग्लोबल वार्मिंग को कम करने में काफी मदद मिलेगी। 

लहसुन का काढ़ा बनाकर पशुओं को पिलाएं

पशु की डिलीवरी के 4-5 दिन के पश्चात पशु को लहसुन का काढ़ा अवश्य पिलाना चाहिए। इससे भी दूध की मात्रा काफी बढ़ जाती है। इसके लिए 125 ग्राम लहसुन, 125 ग्राम चीनी अथवा शक्कर और 2 किलो ग्राम दूध को मिलाकर पशु को दें। इससे पशु की दूध देने की क्षमता काफी बढ़ जाएगी।

जई का चारा भोजन के रूप में खिलाएं

लहसुन के अतिरिक्त पशुओं को जई का चारा भी खिलाया जा सकता है। ये भी उतना ही पोष्टिक होता है, जितना लहसुन। इसके इस्तेमाल से भी पशुओं की दूध देने की मात्राकाफी बढ़ जाती है। इसमें क्रूड प्रोटीन की मात्रा 10-12% फीसद तक होती है। जई से साइलेज भी बनाया जा सकता है, जिसको आप दीर्घ काल तक पशुओं को खिला सकते हैं।

दवा के लिए जरूरी सामग्री व उसकी मात्रा 

तारामीरा, मसूर की दाल, चने की दाल, अलसी, सौंफ, सोयाबीन, यह सभी चीजें 100 ग्राम की मात्रा में लें। मोटी इलायची के दाने 50 ग्राम, सफेद जीरा 20 ग्राम, दवा बनाने की विधि उपरोक्त सभी चीजों को देसी घी में उबालकर इसका एक किलो काढा बनाकर पशु को खिलाएं, इस दवा के सेवन से पशुओं की पाचन शक्ति काफी बढ़ेगी। इससे उन्हें भूख भी ज्यादा लगेगी। जब पशु ज्यादा खाता है, तो उसकी दूध देने की मात्रा भी काफी बढ़ जाती है।  

जीरा व सौंफ से निर्मित दवा

आधा किलो सफेद जीरा और एक किलो सौंफ को पीस कर रख लें। अब प्रतिदिन इसकी एक या दो मुट्‌ठी मात्रा आधा किलो दूध के साथ पशुओं को दें। इससे पशु के दूध देने की मात्रा काफी बढ़ जाएगी।

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जड़ी-बूंटियों से निर्मित दवा

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि उपरोक्त दवाओं के अतिरिक्त पशुपालक आयुर्वेदिक में इस्तेमाल में लाई जाने वाली जड़ी बूटियां जैसे- मूसली, शतावरी, भाकरा, पलाश और कम्बोजी आदि को भी मिलाकर पशुओं को दे सकते हैं।

विशेष- उपरोक्त में दिए गए घरेलू नुस्खे अथवा उपायों को अपनाने से पूर्व एक बार पशु चिकित्सक का मशवरा जरूर लें। आपको यह सलाह दी जाती है, कि किसी भी औषधि या नुस्खे का उपयोग पशु चिकित्सक की देखरेख में ही करें।